नैनीताल 50 करोड़ स्टोन क्रेशर घोटाला: हाई कोर्ट सख्त, 15 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई
सचिव खनन के शपथपत्र में भिन्नता और अवैध खनन के मामलों की गहन जांच की मांग, क्या माफियाओं पर होगी कार्रवाई?
नैनीताल—उत्तराखंड में खनन माफियाओं और नौकरशाही के गठजोड़ का एक नया मामला सामने आया है। नैनीताल जिले में 2016-17 के बीच हुए अवैध खनन और भंडारण पर लगे 50 करोड़ रुपये से अधिक के जुर्माने को माफ कर देने पर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने इस मामले में तत्कालीन जिलाधिकारी और अन्य अधिकारियों की व्यक्तिगत पेशी का आदेश देते हुए सुनवाई 15 अक्टूबर तक स्थगित कर दी है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि ये कोई छोटी बात नहीं, जब तक सभी तथ्य सामने नहीं आ जाते, मामले की गहन जांच जारी रहेगी।
याचिकाकर्ता भुवन पोखरिया, जो नैनीताल के एक जागरूक समाजिक कार्यकर्ता हैं, ने जनहित याचिका दायर करते हुए यह सनसनीखेज खुलासा किया कि तत्कालीन जिलाधिकारी ने 2016-17 में जिले के 18 स्टोन क्रेशरों पर लगे जुर्माने को माफ कर दिया। जिन क्रेशरों पर करोड़ों का जुर्माना था, उन्हें तो माफी दी गई, जबकि जिनका जुर्माना कम था, उनपर कोई रियायत नहीं दी गई। इस मनमानी पर कोर्ट में पेश सचिव खनन के शपथपत्र और आरटीआई से प्राप्त आंकड़ों के बीच बड़ा अंतर पाया गया है।भुवन पोखरिया ने कोर्ट में बताया कि आरटीआई के जरिए उन्हें जो आंकड़े मिले थे, उनके अनुसार 2015-16 में 27, 2016-17 में 58 और 2017-18 में 48 केस दर्ज हुए थे। जबकि 90% मामलों में जुर्माना या तो शून्य कर दिया गया या बहुत कम कर दिया गया। कोर्ट में सचिव खनन द्वारा पेश किए गए आंकड़े इस सच्चाई से बिल्कुल मेल नहीं खाते। रिपोर्ट में नैनीताल जिले के केसों की संख्या को भी गलत दिखाया गया है, जबकि वास्तविक आंकड़े काफी अलग हैं।
इस घोटाले के खुलासे से पता चलता है कि तत्कालीन जिलाधिकारी ने अपने कार्यकाल के दौरान जिन स्टोन क्रेशरों पर करोड़ों रुपये का जुर्माना लगा था, उन्हें माफी दी। लेकिन जिनका जुर्माना कम था, उन पर किसी प्रकार की रियायत नहीं दी गई। जब इसकी शिकायत राज्य के मुख्य सचिव और सचिव खनन से की गई, तो यह कहकर टाल दिया गया कि जिलाधिकारी का यह विशेषाधिकार है।याचिकाकर्ता ने शासन से लिखित में जवाब मांगा, लेकिन आज तक इसका कोई उत्तर नहीं मिला। आरटीआई के माध्यम से भी स्पष्ट किया गया कि किसी नियमावली के तहत जिलाधिकारी को अवैध खनन और भंडारण पर लगे जुर्माने को माफ करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
कोर्ट ने सचिव खनन से स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे पूरे राज्य में 2016 से अब तक जुर्माना माफ किए गए सभी स्टोन क्रेशरों का विवरण पेश करें। अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होगी और दोनों अधिकारियों को फिर से कोर्ट में हाजिर होना होगा। इस मामले में अब यह देखना होगा कि क्या प्रदेश सरकार और न्यायपालिका इस घोटाले में लिप्त अधिकारियों पर कड़ा एक्शन लेती है या नहीं।
इस घोटाले ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया है, और यह मामला आने वाले दिनों में और गंभीर मोड़ ले सकता है। जनता की नजर अब हाई कोर्ट की अगली सुनवाई पर टिकी हुई है।